Kavita Ke Liye | Snehmayi Chaudhary
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कविता के लिए | स्नेहमयी चौधरी कविता लिखने के लिए जो परेशान करते थे  उन सबको मैंने धीरे-धीरे अपने से काट दिया।  जैसे : ज़रा सी बात पर  बड़ी देर तक घुमड़ते रहना,  अपने किए को हर बार ग़लत समझना,  निरंतर अविश्वास की झिझक ओढ़े घूमना।  अब सिर ऊँचा कर स्वस्थ हो रही हूँ,  मकान बनाने में जुटे मज़दूरों को देख रही हूँ। 
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मेरे बेटे | कविता कादम्बरी मेरे बेटे                                                       कभी इतने ऊँचे मत होना  कि कंधे पर सिर रखकर कोई रोना चाहे तो  उसे लगानी पड़े सीढ़ियाँ  न कभी इतने बुद्धिजीवी  कि मेहनतकशों के रंग से अलग हो जाए तुम्हारा रंग  इतने इज़्ज़तदार भी न होना  कि मुँह के बल गिरो तो...
Published 06/26/24
बाद के दिनों में  प्रेमिकाएँ | रूपम मिश्रा  बाद के दिनों में प्रेमिकाएँ पत्नियाँ बन गईं वे सहेजने लगीं प्रेमी को जैसे मुफलिसी के दिनों में अम्मा घी की गगरी सहेजती थीं वे दिन भर के इन्तजार के बाद भी ड्राइव करते प्रेमी से फोन पर बात नहीं करतीं वे लड़ने लगीं कम सोने और ज़्यादा शराब पीने पर प्रेमी जो...
Published 06/25/24
Published 06/25/24