Filhaal | Uday Prakash
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Description
फ़िलहाल | उदय प्रकाश  एक गत्ते का आदमी बन गया था लौहपुरुष बलात्कारी हो चुका था सन्त व्यभिचारी विद्वान चापलूस क्रान्तिकारी मदारी को घोषित कर दिया गया था युग-प्रवर्तक अख़बार और चैनल चीख़-चीख़ कर कह रहे थे आ गयी है सच्ची जम्हूरियत जहाँ सबसे ज्यादा लाशें बिछी थीं वहीं हो रहा था विकास जो बैठा था किसी उजड़े पेड़ के नीचे पढ़ते हुए अकेले में कोई बहुत पुरानी किताब वही था सन्दिग्ध उसकी हो रही थी लगातार निगरानी
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मेरे बेटे | कविता कादम्बरी मेरे बेटे                                                       कभी इतने ऊँचे मत होना  कि कंधे पर सिर रखकर कोई रोना चाहे तो  उसे लगानी पड़े सीढ़ियाँ  न कभी इतने बुद्धिजीवी  कि मेहनतकशों के रंग से अलग हो जाए तुम्हारा रंग  इतने इज़्ज़तदार भी न होना  कि मुँह के बल गिरो तो...
Published 06/26/24
बाद के दिनों में  प्रेमिकाएँ | रूपम मिश्रा  बाद के दिनों में प्रेमिकाएँ पत्नियाँ बन गईं वे सहेजने लगीं प्रेमी को जैसे मुफलिसी के दिनों में अम्मा घी की गगरी सहेजती थीं वे दिन भर के इन्तजार के बाद भी ड्राइव करते प्रेमी से फोन पर बात नहीं करतीं वे लड़ने लगीं कम सोने और ज़्यादा शराब पीने पर प्रेमी जो...
Published 06/25/24
Published 06/25/24