Ik Roz Doodh Ne Ki Pani Se Paak Ulfat | Unknown
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इक रोज़ दूध ने की पानी से पाक उल्फ़त | अज्ञात  इक रोज़ दूध ने की, पानी से पाक उल्फ़त इक ज़ात हो गए वो, मिल-जुल के भाई भाई इनमें बढ़ी वो उल्फ़त, एक रंग हो गए वो एक दूसरे ने पाया, सौ जान से फ़िदाई  हलवाई ने उनकी, उल्फ़त का राज़ समझा  दोनों से भर के रक्खी, भट्टी पे जब कढ़ाई  बरछी की तरह उट्ठे, शोले डराने वाले  भाई रहे सलामत, पानी के दिल में आई  ख़ामोश भाप बनकर, भाई से ली विदाई  क्या पाक-दामनी थी, के जान भी गँवाई  जब दूध ने ये देखा, उल्फ़त का जोश आया  जब दूध ने ये देखा, उल्फ़त का जोश आया  कहने लगा कहां है, वो जॉं निसार भाई  अफ़सोस आग ने है, भाई मेरा जलाया  मुझको न कहना भाई, जब तक न की चढ़ाई  कहते ही बात इतनी, उसको जलाल आया  कहते ही बात इतनी, उसको जलाल आया  ऐसा उबल के झपटा, कि आग सब बुझाई  हलवाई ने उसपे दिया, पानी का एक छीँटा  बैठा वो दूध नीचे, समझा कि आया भाई।  जिस तरह दूध-पानी, रखते थे पाक उल्फ़त  अब रहें जहां में, हर एक भाई भाई!
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मेरे बेटे | कविता कादम्बरी मेरे बेटे                                                       कभी इतने ऊँचे मत होना  कि कंधे पर सिर रखकर कोई रोना चाहे तो  उसे लगानी पड़े सीढ़ियाँ  न कभी इतने बुद्धिजीवी  कि मेहनतकशों के रंग से अलग हो जाए तुम्हारा रंग  इतने इज़्ज़तदार भी न होना  कि मुँह के बल गिरो तो...
Published 06/26/24
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Published 06/25/24
Published 06/25/24