Sirf Mohabbat Hi Mazhab Hai Har Sacche Insaan Ka | Lakshmi Shankar Vajpeyi
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सिर्फ मोहब्बत ही मज़हब है हर सच्चे इंसान का | लक्ष्मीशंकर वाजपेयी माँ की ममता, फूल की खुशबू,  बच्चे की मुस्कान का सिर्फ़ मोहब्बत ही मज़हब है  हर सच्चे इंसान का किसी पेड़ के नीचे आकर राही जब सुस्ताता है पेड़ नहीं पूछे है किस मज़हब से तेरा नाता है धूप गुनगुनाहट देती है चाहे  जिसका आँगन हो जो भी प्यासा आ जाता है,  पानी प्यास बुझाता है मिट्टी फसल उगाये पूछे धर्म न किसी किसान का। ये श्रम युग है जिसमे सबका संग-संग बहे पसीना है साथ-साथ हंसना मुस्काना संग-संग आंसू पीना है एक समस्याएँ हैं सबकी जाति धर्म चाहे कुछ हो सब इंसान बराबर सबका एक सा मरना जीना है बेमानी हर ढंग पुराना इंसानी पहचान का। किसी प्रांत का रहनेवाला या कोई मज़हब वाला कोई भाषा हो कैसी भी रीति रिवाजों का ढाला चाहे जैसा खान-पान हो रहन सहन पहनावा हो जिसको भी इस देश की मिट्टी और हवाओं ने पाला है ये हिन्दुस्तान उसी का और वो हिन्दुस्तान का
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किवाड़ | कुमार अम्बुज ये सिर्फ़ किवाड़ नहीं हैं  जब ये हिलते हैं  माँ हिल जाती है  और चौकस आँखों से  देखती है—‘क्या हुआ?’  मोटी साँकल की  चार कड़ियों में  एक पूरी उमर और स्मृतियाँ  बँधी हुई हैं  जब साँकल बजती है  बहुत कुछ बज जाता है घर में  इन किवाड़ों पर  चंदा सूरज  और नाग देवता बने हैं  एक...
Published 07/07/24
Published 07/07/24
लिखने से ही लिखी जाती है कविता | उदयन वाजपेयी लिखने से ही लिखी जाती है कविता  प्रेम भी करने की ही चीज़ है  जैसे जंगल सुनने की  किताब डूबने की  मृत्यु इंतज़ार की  जीवन, अपने को चारों ओर से  समेट कर किसी ऐसे बिंदु पर  ला देने की जहाँ नर्तकी की तरह  अपने पाँव के अँगूठे पर कुछ देर  खड़ा रह सके वियोग 
Published 07/06/24