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कालीका शक्तिपीठ में देवी आदिशक्ति काली रूप में साक्षात विराजती है। मां काली दस महाविद्याओं में से एक है। कहते हैं की इस स्थान पर देवी सती के दाहिने पैरो की उंगलियां स्थापित हैं। यहां की शक्ति है मां कालिका और शिव यानी भैरव यहां नकुलीश के नाम से रहते है। तांत्रिक विद्या साधना में काली मां को विशेष प्रधानता प्राप्त है भाव बंधन मोचन में मां काली की उपासना सर्वोच्च कही जाती है।
देवी काली की मूर्ति श्याम रंग की है ,उनके सोने से बने बड़े बड़े त्रिनेत्र है, मां की जिव्हा स्वर्ण से बनी बहुत लंबी...
Published 09/18/23
हर साल नवरात्रि में गुह्येश्वरी शक्तिपीठ में मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें भारत, भूटान सहित कई देशों से श्रद्धालु दर्शन करने आते है।यहां नवरात्र के साथ 10 दिवसीय दशैन उत्सव भी मनाया जाता है। इसमें माता की भव्य सवारी पालकी पर निकलती है. इस जगह पर भगवती सती के शरीर के दोनों घुटनों का निपात हुआ। इसलिए यहां की शक्ति गुह्यश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध है यहीं पर चंद्रघंटा योगिनी तथा सिद्धेश्वर महादेव का प्रादुर्भाव हुआ यहां शिव शक्ति एकरूप में विराजमान है। गुह्येश्वरी देवी शक्तिपीठ नेपाल के...
Published 08/29/23
इस एपिसोड में होस्ट निष्ठा सारस्वत आपको लेकर चल रही हैं, उस पावन धरती पर जहां माता सीता माता धरती की गोद में समा गई थी। ये स्थान माता सती का ही शक्तिपीठ है जिसे माता सती के बाए कंधे और वस्त्र का निपात होने से देवी पाटन और देवी सीता के पताल लोक सामने से पातालेश्वरी कहा जाता है। जानिए माता सीता और मां सती के अद्भुद संबंध की अनसुनी पावन कहानी, देवी पाटन पातालेश्वरी शक्तिपीठ की महत्ता, इतिहास, मंदिर विवरण और कैसे पहुंचे कहां रहे विस्तार से।
Published 08/08/23
भारत से बाहर होकर भी अपनी भव्यता इतिहास महत्ता के लिए प्रसिद्ध है इंद्राक्षी मंदिर। देवी आदिशक्ति जो स्वयं प्रकृति है, जो सुंदरता की परिभाषा है, जिनसे सोलह श्रृंगार की कला समस्त स्त्रियों ने सीखी, उन्ही मां आदिशक्ति सती के नुपुर अर्थात घुंघरू श्रीलंका के जाफना में आकर गिरे और इसी स्थान पर इन्द्राक्षी या शंकरी शक्तिपीठ की स्थापना हुई थी। यहां की शक्ति को मां इंद्राक्षी, शंकरी और नागापुष्णी अम्मा के नाम से जाना जाता है तथा शिव या भैरव को रक्ष वंश यानी राक्षसों के ईश्वर राक्षसेश्वर या नायंनार...
Published 08/01/23
अंबिका देवी विराट शक्तिपीठ सतयुग में देवी सती के बाए पैरो की उंगलियों का निपात हुआ था। यहां की शक्ति है मां अंबिका और भगवान शिव यहां भैरव अमृत के रूप में रहते है.
इस मंदिर की मान्यता है की, महाभारत काल में जुए के खेल में कौरवों ने पांडवों को छल से हरा दिया। इसके चलते उन्हें 12 साल के वनवास और एक साल का अज्ञातवास मिला। तब पांडवो ने विराटनगर में ही अपना अज्ञातवास बिताया था उसी दौरान राजा युधिष्ठिर ने विराटनगर पहुंचकर इस शक्तिपीठ पर अपनी कुलदेवी का मानस पूजन किया था। कहते हैं की अज्ञातवास के...
Published 07/24/23
इस एपिसोड में हम जानेंगे कि नारायण ने किस जगह पर भस्मासुर का वध किया था और श्रीराम और भ्राता लक्ष्मण ने कैसे विद्या प्राप्त की और ताड़का का वध किया। हम आपको ले जाएंगे बिहार राज्य के रोहतास जिले के शहर सासाराम में, जहां ताराचण्डी शक्तिपीठ स्थित है। यह स्थान अपने प्राचीनतम और चमत्कारी इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। हम आपको मंदिर और शक्तिपीठ की महिमा के बारे में भी बताएंगे। यह सुनिश्चित करेगा कि आप अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए इस पवित्र स्थान का दर्शन करें।
Published 07/17/23
भगवान श्रीकृष्ण ने अपना शरीर प्रभास चंद्रभागा शक्तिपीठ में त्यागा था। यह एक बहुत ही पवित्र और महिमामयी जगह है जहां श्रद्धालुओं को अपने पिछले पापों से मुक्ति मिलती है और उन्हें भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मंदिर में मां काली की विग्रह और शिवलिंग के दर्शन होते हैं और इस मंदिर की ओर जाने वाला रास्ता श्री राम मंदिर के प्रवेश द्वार के बाईं ओर से जाता है। यह मंदिर भगवान शिव और मां चंद्रभागा की उपासना करने वालों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। तो चलिए इस एपिसोड में हम चलते है गुजरात के प्रभासपाटन...
Published 07/10/23
गुजरात के राजधानी गांधीनगर से 147 किलोमीटर और 3 घंटे की दूरी पर पर्वत की चोटी पर स्थित है अंबाजी शक्तिपीठ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां माता के हृदय के एक भाग का निपात हुआ था। इस मंदिर में शक्ति को ‘कुमारी’ के रूप पूजा जाता है और शिव को ‘कालभैरव’ के रूप में पूजा जाता है। गुजरात में माता के तीन शक्तिपीठ स्थापित हैं - अम्बिका, कालिका तथा चंद्र भंगा प्रभास। अंबाजी मंदिर हर सुबह अंबे मां यंत्र के दर्शन के लिए खुलता है। गर्मियों एवं बारिश के दिनों में सुबह 7:00 से 9:00 तक मंदिर के दर्शन होते...
Published 07/03/23
कालमाधव शक्तिपीठ में माता सती के बाया नितंब का निपात हुआ और यहां से सोन नदी प्रकट हुई । यहां की शक्ति है मां काली और भैरव को अतिसांग के नाम से जाना जाता है। यहां से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है
सोनदेश शक्तिपीठ जहां माता का दायां नितंब गिरा था। और यहां से ही नर्मदा नदी का उद्गम स्थल है। यहां को शक्ति है मां नर्मदा और भैरव को भद्रसेन के नाम से पुकारा जाता है।
नर्मदा नदी का उद्गम सोनदेश शक्तिपीठ के एक कुंड से होता है। नर्मदा नदी में बसने वाले सभी कंकर को शंकर कहा जाता है, और सोन नदी का उद्गम...
Published 06/23/23
कामाक्षी अर्थात सबसे सुंदर आँखों वाली। जिनकी नेत्रों के दर्शन मात्र से ही भक्तों के भाग्य बदल जाते हैं। कहते है देवी कामाक्षी अम्मा की एक आंख में लक्ष्मी और दूसरी में सरस्वती मां का वास है। यहां की शक्ति है मां 'देवगर्भा' तथा भैरव यानी शिव को 'रुरु' कहते हैं।यहां पर देवी सती के अंगों के निपात को लेकर तीन विभिन्न मान्यताएं है। कुछ लोगों का मानना है कि यहां देवी देह का कंकाल गिरा था जबकि अन्य मतों के अनुसार यहां देवी देह पर पहना हुआ आभूषण 'उत्तियाना' जो की पेट पर धारण किया जाता है वह गिरा था...
Published 06/17/23
चित्रकूट की पावन धरती पर ही रामचरितमानस जैसे अमर कृति लिखने वाले गोस्वामी तुलसीदास ने यहां कई वर्ष व्यतीत किए। उन्होंने ही भगवान श्री राम की भक्ति के कारण चित्रकूट को रामगिरी रूप में वर्णित किया है। और इसी स्थान पर तुलसीदास ने हनुमान बाबा की सहायता से भगवान श्री राम के साक्षात दर्शन भी किए। पौराणिक ग्रंथों में विवरण आता है की राम के आगमन से पूर्व ही सतयुग के प्रारम्भ से चित्रकूट एक बहुत सुन्दर देवी पीठ था। इस जगह पर माता सती का दाया वक्ष का निपात हुआ था। यहां की शक्ति है मां 'शिवानी' और भैरव...
Published 06/09/23
इस स्थान पर देवी मां के बाएं वक्ष यानी बाएं स्तन का निपात हुआ हुआ था इसीलिए माना जाता है की मां त्रिपुर मालिनी संतान हीन दंपतियों को ममता का वरदान देती है। श्रीमद्देवी भागवत् पुराण में जलंधर की कथा है। उसके अनुसार भगवान शिव के क्रोध से जालंधर की उत्पति हुई वो भगवान शिव के समान ही सुंदर और बलशाली था लेकिन क्रोध से उत्पन्न होने के कारण वो नकारात्मकता से भरा हुआ था इसलिए वो राक्षस बन गया। साथ ही उसने अपने बल और बुद्धिमत्ता से जालंधर रक्षसो का राजा बन गया और देवताओं के साथ उसने कई युद्ध लड़े। आगे...
Published 06/02/23
कामाख्या मंदिर के गर्भ ग्रह में देवी की किसी प्रतिमा की पूजा नहीं होती बल्कि यहां माता सती की योनि की पूजा होती है जिसका सतयुग में भगवान विष्णु द्वारा माता सती को सुदर्शन से विभाजित करने के बाद गुवाहाटी में निपात हुआ था रहस्मयी बात है योनि पिंड से लगातार बहता झरना .. इसी के साथ जून के महीने में माता ३ दिन के लिए रजवाला होती है.. पुजारी द्वारा मां की योनि के चारों ओर एक साफ सूखा सूती कपड़ा बिछाया जाता है। जिसके बाद 3 दिन के लिए मंदिर के कपाट बंद हो जाते है बाद में जब मंदिर खोला जाता है तो...
Published 05/26/23
मान्यता के अनुसार कुरुक्षेत्र के शक्तिपीठ श्री देवीकूप भद्रकाली मंदिर यानि सावित्री शक्तिपीठ में मां सती का दाहिना टखना का निपात हुआ था। किंवदंती है कि महाभारत युद्ध शुरू करने से पहले, भगवान कृष्ण के साथ पांडवों ने जीत हासिल करने की उत्कट आशा के साथ इस पवित्र स्थल पर आशीर्वाद मांगा और प्रार्थना की। अपनी भक्ति के एक संकेत के रूप में, उन्होंने अपने रथों से घोड़ों का दान किया, चांदी, मिट्टी या अन्य सामग्रियों से बने घोड़ों की भी पेशकश करने की एक कालातीत परंपरा की शुरुआत करी। इसके अतिरिक्त,...
Published 05/15/23
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर के दक्षिण दिशा में यमुना नदी के तट पर सती के हाथ की उंगली गिरने से भगवती ललिता का प्राकट्य हुआ था। ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में मां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मां ललिता के चरण छूकर ही बहती थी। इसलिए मां को प्रयाग की महारानी भी कहा जाता है।
यहां मुख्य रूप से देवी के तीन स्वरूपों की पूजा होती है। मां ललिता देवी, कल्याणी देवी और अलोपी देवी के मंदिरों को शक्तिपीठ माना गया है। देवी की उंगलियां संभवतः तीनो स्थानों पर गिरी इसलिए तीनों में से कौन श्रेष्ठ कौन...
Published 05/07/23
शिव तथा सती के ऐक्य का प्रतीक है। शिव पुराण के अध्याय 38 में भी द्वादश ज्योर्तिलिंग की जो चर्चा की गई है, उसमें बैद्यनाथं चिताभूमौ का उल्लेख है। जो यह स्पष्ट करता है कि यहाँ सती का हृदय गिरा था। यहाँ की शक्ति 'जयदुर्गा' तथा शिव 'वैद्यनाथ' हैं। यह धाम सभी ज्योतिर्लिंगों से सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के साथ शक्तिपीठ भी मौजूद है। इसी कारण से इस स्थान को ह्रदय पीठ या हार्द पीठ के नाम से भी जाना जाता है। जहां पर मंदिर स्थित है उस स्थान को देवघर यानी देवताओं...
Published 05/01/23
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
इस गायत्री मंत्र को चार वेदो का सार बताया गया है और गायत्री माता सभी वेदो की माता है पहले गायत्री मंत्र की महिमा सिर्फ देवी देवताओं तक सीमित थी लेकिन महर्षि विश्वामित्र ने कठोर तपस्या करके इस मंत्र को प्राप्त किया और सृष्टि कल्याण हेतु आम जन तक पहुंचाया. राजस्थान के पुष्कर शहर में मणिबंध मणिवेदिका या गायत्री पर्वत पर स्थित है गायत्री देवी मणिबंध शक्तिपीठ। यहाँ देवी सती के दोनों मणिबंध या कलाई का निपात हुआ था कुछ लोग...
Published 04/24/23
बाई भुजा से माता रानी असुर, दैत्य, नकारात्मकता और भक्तों के संकटों को नष्ट कर देती हैं और दाहिनी भुजा से अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं और उनका कल्याण करती हैं। इस एपिसोड में जानिए पश्चिम बंगाल के केतुग्राम में अजोय नदी के किनारे स्थित माँ बहुला शक्तिपीठ की कहानी. जहां माता सती की बाई भुजा का निपात हुआ था। जिसके दर्शन मात्र से आपके जीवन के सभी नकारात्मकताएं, कष्ट आपके ऊपर किए हुए काले जादू, भूत प्रेत बाधा, तंत्र मंत्र उपचार सब नष्ट हो जाते हैं।यहां की शक्ति है मां बहुला और भैरव यानी शिव को...
Published 04/17/23
इस एपिसोड में हम बात करेंगे दक्षायणी देवी मानस शक्तिपीठ की। कैलाश पर्वत के निचले भाग में स्थित मान सरोवर के किनारे स्थित यह शक्तिपीठ है जहां की अधिष्ठात्री देवी हैं माता दक्षायनी, जिन्हें कुमुदा के नाम से भी जानते हैं। मान सरोवर यानी मन का सरोवर के किनारे होने से इस जगह नाम मानस शक्तिपीठ हुआ। माता के दाहिने हाथ का निपात इसी स्थान पर हुआ था। वही दाहिना हाथ जिसे वरद हस्त यानी आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।
Published 04/10/23
इस एपिसोड में हम माता सती के उस शक्तिपीठ की बात करेंगे जो राजा जनक और सुनैना माता की पुत्री सीता माता की जन्मस्थली के साथ-साथ भगवन राम और माता सीता की पहली मुलाकात का साक्षी रहा जो जगह आज सीता महल के नाम से प्रसिद्ध है। नेपाल की राजधानी काठमांडू से लगभग 225 किलोमीटर और भारतीय सीमा क्षेत्र से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर धनुषा जिले के जनकपुर मंडल में स्थित है जानकी देवी मंदिर और मथिला शक्तिपीठ। बहुत ही कम लोगों को पता है कि यह स्थान देवी मां का शक्ति पीठ भी है। जहाँ माता सती के बाये कंधे का...
Published 04/03/23
ऋषि राजा सूरत को बताते हैं कि राजन जब ब्रह्मा जी ने वहां मधु और कैटव को मारने के उद्देश्य से भगवान विष्णु को जगाने के लिए तमोगुण की अधिष्ठात्री देवी योगनिद्रा कि इस प्रकार स्तुति की तभी भगवान के नेत्र मुख कमल नासिका और वक्ष स्थल से निकलकर अव्यक्त जन्में ब्रह्मा जी की दृष्टि के समक्ष खड़ी हो गई योग निद्रा से मुक्त होने पर स्वामी भगवान जनार्दन निद्रा से जाग उठे फिर उन्होंने उन दोनों को देखा दोनों मधु और कैटव अत्यंत बलवान और पराक्रमी थे और क्रोध से लाल आंखें किए ब्रह्मा जी को खा जाने के लिए उनकी...
Published 03/27/23
12वीं शताब्दी में आल्हा-उदल नाम के दो वीरयोद्धा थे जिसमें से योद्धा उदल राजा पृथ्वीराज चौहान से युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए जिसके बाद भाई आल्हा ने बदला लेने के लिए पृथ्वीराज चौहान और उनकी सेना पे जम के हमला किया। माना जाता है कि आल्हा ने माँ शारदा की भक्ति कर अपना शीश चढ़ाया था जिससे प्रसन्न हो माँ ने आल्हा को अमरता का वरदान दिया था कई कहानियों के अनुसार आल्हा आज भी अपने घोड़े पर सवार होकर हर सुबह माता के चरणों में फूल चढ़ा पूजा करते है इसकी पुष्टि पुजारी द्वारा सुबह मंदिर के द्वार खोलने पे...
Published 03/21/23
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का अहम स्थान है यह एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जिसमें शिव-पार्वती दोंनो एक साथ स्थापित हैं। आंध्रप्रदेश के कुरनूल में ब्रह्मगिरी पर्वत पर जिसे दक्षिण का कैलाश भी मानते हैं यहां कृष्ना नदी के तट पर स्थित इस ज्योतिर्लिंग में आज भी हर रोज महादेव और माता पार्वती का विवाह कराया जाता है। यहां मल्लिका मां पार्वती को और अर्जुन भगवान शिव को कहते हैं। इसी मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के प्रांगण में स्थित है श्रीशैलम शक्तिपीठ। जहां माता सती...
Published 03/13/23
अमरनाथ गुफा में महादेव ने मां पार्वती को परम ज्ञान दिया था। जिससे उनके मनुष्यत्व का नाश हुआ , फिर उन्होंने इसी स्थान पर घोर तप किया महामाया रूप को प्राप्त हुई। इस तत्वज्ञान को 'अमरकथा' के नाम से जाना जाता है इसीलिए इस स्थान का नाम 'अमरनाथ' पड़ा। पवित्र अमरनाथ गुफा में ही स्थित है महामाया शक्तिपीठ यहाँ माता के कण्ठ का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति है ‘महामाया’ तथा भैरव यानी शिव को ‘त्रिसन्ध्येश्वर’ कहा जाता है। हर साल स्थानीय सरकार शिव भक्तों के लिए वार्षिक अमरनाथ यात्रा की व्यवस्था करती है।...
Published 02/27/23